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ज्ञान चालीसा




ज्ञान चालीसा


सदा ज्ञान को अमृत जानो।

समझदार बन सब पहचानो।।

ज्ञान समान नहीं जग में कुछ।

ज्ञानी एक मात्र है सब कुछ।।


जो ज्ञानी वह होत विवेकी।

जीव मात्र पर करता नेकी।।

पारदर्शिता का पोषक वह।

विज्ञ बना देखत सब कुछ वह।।


परम तपस्या का फल ज्ञाना।

ध्यानावस्थित चित्त सुजाना।।

ज्ञान रतन प्रिय दिव्य वतन है।

छिपा ज्ञान में ध्यान गहन है।।


बोध ज्ञान का मूलाधारा।

बोधरहित नर विषय-विकारा।।

ज्ञान चेतना का द्योतक है।

यह संस्कृति का उत्प्रेरक है।।


बिना ज्ञान संस्कृति नहिं बनती।

संस्कृति सभ्य मनुज को रचती।।

मानव निर्माता बन जाता।

सकल जगत को सुख पहुँचाता।।


अनुभवसिद्ध ज्ञान परमार्थी।

उत्तम अनुभव बिन मन स्वार्थी।।

अति अनुभव  है ज्ञान प्रदाता।

सहज अनुभवी प्रिय सुखदाता।।


बिना ज्ञान के नहीं प्रतीती।

बिन प्रतीति के होत न प्रीती।।

प्रीति बिना नहिं भक्ति मिलत है।

भक्ति बिना नहिं शक्ति चलत है।।


बिना ज्ञान के नहिं परिचय है।

ज्ञान बिना नहिं प्रिय अभिनय है।।

मधु अभिनय बिन नहीं सफलता।

अभिनयरहित प्रतीक विफलता।।


ज्ञान दिलाता आत्मज्ञान है।

आत्मज्ञान में मोक्षज्ञान है।

आत्मज्ञान बिन मानव सूना।

दिन दूना अरु रात चौगुना।।


ज्ञानकलशमन का कर वंदन।

यह अति पावन शीतल चंदन।।

ज्ञानप्रकाशमान बन चलना।

सदा ज्ञान की इज्जत करना।।


दोहा-


ज्ञानी बनने के लिये, करते रहो प्रयास।

ज्ञानीजन के हृदय में, स्थित दिव्य प्रकाश।।





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1 Comments

Gunjan Kamal

17-Dec-2022 05:13 PM

बहुत खूब

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